पृथ्वीराज चौहान के मित्र और उनके दरबार के राज कवि चन्द्र बरदाई जीवन भर उनके साथ रहे। सच्चे अर्थ मैं वे एक महान मित्र थे। चन्द्र बरदाई का जन्म आज के पाकिस्तान के लाहौर मै एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनकी एक मात्रा रचना पृथवीराज रासो है जो कि हिंदी का सबसे बड़ा काव्य है। जिसमें १०,००० हज़ार से अधिक छंद हैं।
जब पृथ्वीराज चौहान युद्ध में मुहम्मद गौरी से परास्त हुए और गौरी उन्हें गजनी ले गया। तव वे स्वयं को वश में नहीं रख सके और गजनी चले गये। कैद में पृथ्वीराज चौहान को जब अंधा कर दिया गया तब उनकी यह अवस्था देख कर उन्होंने गजनी के वध की योजना बनाई। और उन्होंने गजनी का हृदय जीता एवं उसको बताया कि पृथ्वीराज शब्दभेदी बाण चला सकते हैं। इससे उत्साहित हो कर गौरी ने पृथ्वीराज की यह कला देखने की इच्छा प्रगट की और पृथ्वीराज ने इसे सहर्ष स्वीकारा। प्रदर्शन के दिन चंद्र बरदायी गौरी के साथ ही थे। अन्धे पृथ्वीराज को लाया गया और उनसे अपनी कला का प्रदर्शन करने को कहा गया। पृथ्वीराज के द्वारा जैसे ही एक घण्टे के ऊपर बाण चलाया गया तो गौरी के मुँह से अकस्मात ही "वाह! वाह!!" शब्द निकल पड़ा। बस फिर क्या था चंदबरदायी ने तत्काल एक दोहे में पृथ्वीराज को यह बता दिया कि गौरी कहाँ पर एवं कितनी ऊँचाई पर बैठा हुआ है।
वह दोहा कुछ इस प्रकार था-
चार बाँस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमान।ता ऊपर सुल्तान है, मत चूके चौहान।।
इस प्रकार चंद बरदाई की सहायता से पृथ्वीराज के द्वारा गौरी का वध कर दिया गया।

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